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रेल भाड़े में वृद्धि को विपखी पार्टियो व मिडिया द्वारा एक अनबुझ पहेली बनाया जा रहा है I ऐसा नहीं है कि इस वृद्धि का अभिप्राय: उनकी समझ में नहीं आ रहा हो I
पिछले दस सालो में U P A सरकार द्वारा बाकि और सामग्रियों और दूसरे परिवहन मूल्यों की तुलना में रेल भाड़े में नाम मात्र कि भी वृद्धि नहीं कि गई थी इसके पीछे राजनीति की वो दांव पेंच रही है जिनपर चर्चा करना बेहद जटिल है I प्रतिवर्ष लगभग 110000000000 ( ग्यारह हजार करोड़ ) प्रतिदिन करीब 30 करोड़ रुपयो का घाटा रेलवे को सहना करना पड़ रहा है – जिसका खामियाजा भी किसी न किसी रूप में रेल यात्रिओ को
भूत भविष्य व वर्त्तमान में सहन करना पड़ रहा है और निरंतर सहना पड़ सकता था I
जितनी सुरख्या व सुविधाओ की आवस्यकता आज भारतीय रेल को है वो मौजूदा घाटे को सहते हुए पूरी कर पाना किसी भी सरकार के वश की बात नहीं है I
अलबत्ता मोदी सरकार को अच्छे दिन लाने की शुरुआत पहले करनी चाहिए थी तत्पश्चात रेल किरायों में वृद्धि करने की बात सोचनी चाहिए थी , बावजूद इसके माल भाड़ो की वृद्घि को स्थगित रख देनी चाहिए ताकि रोजमर्रा की जरूरत की चीजो की कीमतों पर इसका कोई असर न पड़े I I
बहरहाल यदि भारत की जनता को रेलवे में पूरी सुरख्या व सुविधाओ की आवश्यकता है तो इस वृद्धि को उन्हें स्वीकारना ही पड़ेगा आखिर कुछ पाने के लिए कुछ खोने की कवायत तो रखनी ही पड़ती है I
अब रेलभाड़े में वृद्धि को जनआक्रोश की नहीं जन समर्थन की जरूरत है तथा मालभाड़े को रहितादेश ( STAY ORDER ) की जरूरत है I
धन्यवाद – सूरज अग्रवाल
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