इन दो पंक्तियों को गाने व सुनने में प्रताख्या में जितना अच्छा लगता है , आज देश की हालत पर यदि नजर डाली जाय तो ये पंक्तिया बिलकूल मजाक लगती है . दरअसल समय के अनुरूप इस गीत के बोल कुछ असे होने चाहिए – ” सारे जंहा से अच्छा हिंद्स्ता हमारा”
” हम लूटेरे है इसके ये लुटिस्तान हमारा “
ख्यमा कीजियेगा मेरा उधेश्य राष्ट्र की गरिमा पर प्रहार करना नहीं है , दरअसल आज देश का निचले तबके से लेकर ऊपर तक अमूलन हर व्यक्ति अपने अपने तरीके से इस देश को लूटने में लगा है और इस लूटमार में हमारे नेता गन सबसे आगे है .
इस लूटमार के पीछे प्रमुख दो कारण है ,
पहला – हमारे देश का लचीला कानून , दूसरा – भ्रस्टाचार
हमारे देश का कानून इतना लचीला है (Flexible ) है कि गाहे बगाहे बड़ी आसानी से इसे अपनी सुविधानुसार मोड़ा जा सकता है , इसे मोड़ने के चक्कर में अक्सर ये टूटती भी रहती है लेकिन टूटने पर फिर इसे भ्रस्टाचार नामक एडेह्शिव ( चिपकाने वाला पदार्थ ) लगाकर जोड़ दिया जाता है .
ये तो हम हिन्दुस्तानियों के पास है एक ‘ जुगाड़ ‘ वाली बात जिसे अन्ना जी सभी से छिनने पे तुले है . बड़े से बड़ा काम जंहा इसके एवज में हासिल कर लिया जाता है वही बड़ी से बड़ी रूकावटे भी इससे दूर हो जाती है .
हिन्दुस्ता में इक्कीसवी सदी का ये दौर चोरो का नहीं लूटेरो का रहा है .
आये दिन अरबो खरबों का एक नया घोटाला सारे टी० वी० चेनल की हेड लाइन हुआ करती है ,तो नित नए दिन करोडो अरबो रुपयों की भू सम्पदा (Mines ) को भ्रस्टाचार के बल पर कोडियो के भाव अपने अनुवइयो को नीलम कर दिया जाता है तो कंही न कंही जनहीत कानून के नाम पर हजारो एकड़ जमीने किसानो से छीनकर बड़े बड़े उधोगपतियो अथवा बिल्डरों को हस्तान्तर किये जा रहे है .
शायद…… नहीं – यक़ीनन हमारी सरकार इस देश से गरीबी मिटने की बजाय , गरीबो को मिटा देना चाहती है .
वह बिलकूल इस तर्ज़ पर काम कर रही है – ‘ न रहेगी बांस तो न बजेगी बांसुरी ‘
जब देश में गरीब जिन्दा ही नहीं रहेंगे तो गरीबी अपने आप मिट जाएगी .
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